________________
'सुन्न सन्नाटा रहा। किसी का बोल नहीं आया। तीनों के मन से न जाने क्या-क्या निकलकर अलक्षित और अव्याहत रूप से उस कमरे की शून्यता में व्याप्त हो गया। एक भारी त्रास सारे कमरे में इन तीनों ही के जी को घोंटने लगा। 112 नीरवता के वातावरण को साकार करने में कथाकार का शिल्प यहाँ बेजोड़ है ।
भाषा-शैली
कथाकार जैनेन्द्र ने परम्परागत शैली से दूर हटकर नवीन शैली का सृजन किया है। उन्होंने शिल्प के पुराने बन्धनों को तोड़कर अपनी वस्तु उद्देश्य तथा मूक संवेदना के अनुरूप निजी भाषा-शैली का आविष्कार किया है उनकी भाषा शैली उनकी करुणा की मूल संवेदना से उपयुक्त रूप से सम्बद्ध है, अतः उसमें अपना निजी वैशिष्ट्य लक्षित होता है। अपनी भाषा शैली द्वारा वे वस्तु पात्र - चयन तथा उनका चित्रण इस ढंग से करते हैं कि उनकी अन्तिम परिणति एक विषादमय वातावरण में होती है। जैनेन्द्र अपने संवेदना - बिम्ब की कुशल अभिव्यक्ति के लिए संक्षिप्त तथा तीखी शैली तथा सरल किन्तु वक्र, क्षिप्र भाषा को प्रयोग में लाते हैं। जैनेन्द्र की भाषा शैली का शिल्प विभिन्न तत्वों से निर्मित हुआ है, अतः शैली तथा भाषा दोनों का विवेचन अपेक्षित है ।
कथाकार जैनेन्द्र ने अपने साहित्य में व्यास, प्रत्यक्ष, इतिहास तथा समाज, परोक्ष और नाटकीय दोनों कोटियों की शैलियों का प्रयोग किया है। 'परख' में विवरण देने के लिए प्रत्यक्ष या इतिहास शैली का आश्रय लिया है । 'परख' में लेखक सत्यधन का परिचय देने में अपनी ओर प्रत्यक्ष तथा पात्र की ओर इतिहास का आश्रय लेता है । सत्यधन का परिचय कथाकार स्वयं देता है तथा उसकी विवेचना
112. जैनेन्द्र कुमार परख, पृष्ठ - 62
[196]