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अन्तर्विवाद
'अनन्तर' में नायक प्रसाद का एक सुन्दर अन्तर्विवाद है । " 'जयवर्धन' में अनेक भीतरी विचार अन्तर्विवाद बनते-बनते रह गए हैं, क्योंकि वहाँ के संवाद किसी अन्य पात्र की उपस्थिति में कहे सुने जाते हैं। 'सुनीता' में भी एक सुन्दर अन्तर्विवाद खण्डित हो गया है। " 'सुखदा में प्रभात लाल का विरोध करता है सुखदा लाल के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति भाव रखती है। प्रभात सुखदा से लाल के बारे में बार-बार पूछता है कि साहब कहाँ हैं, मानो सुखदा को लाल की हर प्रकार की जानकारी होनी चाहिए। सुखदा को अनुभव होता है कि लाल के सम्बन्ध को लेकर उस पर व्यंग्य किया जा रहा है। उसे दिखा जैसे प्रश्न के साथ उसके ओठों में व्यंग्य की मुस्कराहट खेल आयी। * वस्तुतः यह सुखदा के मन को प्रक्षेपीकरण है।
'विवर्त' में जितेन के पास मोहिनी के गहने हैं। वह तिन्नी को बार-बार आग्रह करता है कि वह गहने पहन कर उसे दिखाए। मोहिनी को आभूषण - सज्जित देखने की वह लालसा स्थानान्तरित होकर तिन्नी पर आ जाती है, इसी प्रकार अनिता का जयन्त की बहू को देखने की कामना प्रकट करने का प्रसंग है । वह जयन्त के प्रति वात्सल्य भाव प्रकट करती है यह प्रणय-प्रेम से वात्सल्य प्रेम के
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स्थानान्तरीकरण का उदाहरण है ।
56. जैनेन्द्र कुमार अनन्तर, पृष्ठ 57 जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ 58 जैनेन्द्र कुमार - सुखदा, पृष्ठ 59 जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ 60 जैनेन्द्र कुमार - व्यतीत, पृष्ठ
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