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कथा तथा जीवन के भेदों का उद्घाटन करता है। कभी- कभी पात्र अटककर मनोविश्लेषण के लिए रोक भी उत्पन्न करता है जिसे वह सहानुभूति और विश्वास के आधार पर हटा देता है। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में मुक्त आसंग प्रणालियों का सर्वोत्तम उदाहरण 'जयवर्धन' है । हूस्टन मनोविश्लेषक की सी शैली में जय से कहता है-'x x X x मुझे आपका कर्म विवरण नहीं चाहिए। वह तो उजागर ही है। आया हूँ तो अन्तरंग लेने आया हॅू x × × × ×| जय उसमें रोक उत्पन्न करता है क्योंकि पात्र एकाएक निर्देशनीय नहीं बनता। जय का उत्तर है- 'अन्तरंग लेने के लिए नहीं, न देने के लिए है। इसी प्रकार इला भी आरम्भ में रोक उत्पन्न करती है। हूस्टन समझ लेता है कि उस समय और प्रश्न नहीं पूछने चाहिए। शुद्ध रूप में नहीं किन्तु आंशिक रूप में जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में मनोविश्लेषक पात्र की स्थिति विद्यमान है ।
अन्तर्दर्शन
अन्तर्दर्शन में व्यक्ति एकान्त में अपनी अनुभूतियों का ही मूल्यांकनात्मक निरीक्षण करता है। प्रायः यह प्रत्यावलोकन की शैली में होता है । सुखदा तथा जयन्त अन्तर्दर्शन के द्वारा अपना समस्त जीवन हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं । 'त्यागपत्र' का अन्तिम अंश" प्रमोद का अर्न्तदर्शन है । अन्तर्दर्शन से व्यक्ति का आन्तरिक जीवन तथा पात्र की
उसके प्रति प्रतिक्रिया पाठक के सामने स्पष्ट हो जाती है ।
52 जैनेन्द्र कुमार जयवर्धन, पृष्ठ 23
53 वही,
पृष्ठ 23 54 वही, पृष्ठ 55 जैनेन्द्र कुमार
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त्यागपत्र, पृष्ठ 98-100
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