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सूत्रों के कारण ही तो। जैनेन्द्र के यह सब मान्य नहीं रहा, 'अनाम स्वामी' में इसका संकेत मान्यता का द्योतक नहीं है।"
जैनेन्द्र ने नारी को व्यक्तित्व प्रदान करने के लिए उसके स्वरूप को राजनीति, समाज, परिवार आदि विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में विभिन्न रूपों में देखा है। जैनेन्द्र पर यह आक्षेप किया जाता है कि उनके नारी पात्र अत्यन्त सोचनीय हैं। उनमें भारतीय संस्कृति और मर्यादा की चेतना नहीं है, किन्तु सत्यता यह है कि जैनेन्द्र के पात्र अतीत का स्पर्श करते हुए भी वर्तमान में जीते हैं। अपनी संस्कृति की कभी वे उपेक्षा नहीं करते हैं। भौतिकता के युग में स्त्री पुरुष से आगे बढ़ने के लिए तत्पर है। स्त्री पुरुष में होड़ लगी हुई है, किन्तु जैनेन्द्र के अनुसार स्त्री की पुरूष से प्रतिस्पर्धा उचित नहीं है। ‘त्यागपत्र', 'परख' आदि में जीवन का जो आदर्श व्यक्त हुआ है, वह सामाजिक मर्यादा का पोषक ही है।
___इस प्रकार स्पष्ट है कि जैनेन्द्र जी ने अपने कथा साहित्य में पुरुष और नारी पात्रों में मनोवैज्ञानिक चेतना का समावेश किया है। उन्होंने सभी उपन्यासों और कहानियों में मनोवैज्ञानिक दृष्टि अपनायी है। जैनेन्द्र जी का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण मनोवैज्ञानिक चेतना से प्रभावित होता प्रतीत होता है और उन्होंने मनोवैज्ञानिक चेतना को कथा साहित्य के स्तर पर जिस रूप में स्वीकार किया है, वह व्यक्ति के मन की सत्यता का उद्घाटन करने में सक्षम है।
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