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चित्र प्रस्तुत किया है- 'यम नाम का देव है, सचमुच बडा डरावना है। वास्तव में वह किसी अस्त्र-शस्त्र से आदमी को नही मारता, दरअसल वह मारता ही नही, आदमी उसे देखकर डर के मारे स्वयं ही मर जाता है। 36 'पत्नी' शीर्षक कहानी में भी लेखक ने मृत्यु के भय को बताया है कि हर व्यक्ति इस कल्पना से भयभीत होता है, और यह जानता है कि एक-न-एक दिन उसको मरना अवश्य है।' जैनेन्द्र ने इस कहानी में लिखा है कि 'यद्यपि वह जानती है कि मरना सबको है- उसको मरना है-उसके पति को मरना है, पर उस तरफ भूल से छत पर देखती है तो भय से मर जाती है।
मौत से बचने वाला मनुष्य जीवन से सदैव चिपटा रहता है। 'जयवर्धन' उपन्यास में लेखक ने स्पष्ट लिखा है कि 'मौत को सतत् भीतर लेकर जीना असल जीना है। यह जीना मरकर होता है। 38 जैनेन्द्र के साहित्य का आदर्श त्याग और परमार्थ के रूप में ही घटित होता है।
__ जैनेन्द्र के विचारों में दार्शनिकता का भाव सर्वत्र परिलक्षित होता है। जैनेन्द्र ने जन्म-मृत्यु के आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक पहलू को बहुत व्यापक रूप से विवेचित किया है। उनके साहित्य में ईश्वरीय आस्था पर भी बल दिया गया है। जैनेन्द्र इस सत्य से अवगत हैं कि मृत्यु के आने पर व्यक्ति का सर्वस्व यहीं रह जायेगा और वह भी अपनी मंजिल पर पहुँच जायेगा। जीवन के सारे रिश्ते-नाते तथा समस्त सम्पदा मौत के आने पर व्यर्थ हो जायेंगे।
इस प्रकर यह स्पष्ट हो जाता है कि जैनेन्द्र की नियतिवादी दार्शनिक चेतना में एक ओर भाग्यवाद है और दूसरी ओर कर्मवाद है।
36 जैनेन्द्र कुमार - मौत की कहानी, पृष्ठ - 68 37. जैनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ-70 38 जैनेन्द्र कुमार - जयवर्धन, पृष्ठ - 11 39 एक दिन मौत आयेगी और सब कुछ रह जाएगा - जैनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ – 167
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