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कहा है कि 'मैं मृत्यु का कायल हूँ। जीवन से अधिक उसका कायल हूँ। वह परमेश्वर का वरदान है। मैं मृत्यु को समाप्त करना नहीं चाहता हूँ। उसके बिना जीवन असत्य हो जायेगा। 28 जैनेन्द्र ने 'मौत की कहानी' में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए बताया है कि 'मौत का सिलसिला बन्द हो जायेगा तो जन्म का सिलसिला भी रोक देना पड़ेगा, नहीं तो धरती पर ऐसी किचमिच मचेगी कि सॉस लेने को भी जगह न रहेगी। 29 गरीबी और अमीरी का भेद भी मौत में समाप्त हो जाता है। जैनेन्द्र ने जीवन में केवल एक मात्र प्रेम और स्नेह को ही महत्व प्रदान किया है, क्योंकि वे स्वीकार करते हैं कि मौत के पश्चात् कुछ भी शेष नहीं रहता, केवल प्रेम और स्नेह की स्मृति ही सदैव अपना स्थान बनाए रखती है। स्मृति के सहारे मनुष्य मर कर भी अमर रहता है। 'विवर्त' में जैनेन्द्र ने इस सत्य पर प्रकाश डाला है कि ‘यों हम कब एक दूसरे के हैं, कोई केवल अपना नहीं है, लेकिन क्षण आते हैं कि हम आपस के रह ही नहीं पाते, कहीं किसी ऊपर के हो जाते हैं। तब मालूम होता है कि आपसीपन खिसक कर ओढ़े कपड़े के मानिन्द हमसे नीचे उतर गया है। हम किसी के भी नहीं रहे; अपने भी नहीं रहें, माने सिर्फ नहीं के हो गए हैं। क्या यही कृत-कृत्यता है? कि यह मृत्यु है। 30
जैनेन्द्र कुमार मृत्यु को सार्थक बनाना चाहते हैं। व्यक्ति मृत्यु की चेतना द्वारा स्व केन्द्रित होकर अधिक सुख-भोग का प्रयत्न करता है तो मृत्यु उसके लिए कष्ट दायक सिद्ध होती है। उनके अनुसार जब मनुष्य निर्भीक होकर कर्म करते हैं, तो मृत्यु का भय उनके लिए बाधक नहीं सिद्ध होता है। वे व्यक्ति मृत्यु के आने पर प्रसन्नता के साथ मौत को गले लगा लेते हैं। 'मौत की कहानी' में उन्होंने कहा है
28 जैनेन्द्र कुमार - इतस्तत, पृष्ठ - 113 29. जैनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ - 68 30. जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ -217
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