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________________ स्वीकार करते हैं कि पूर्वजन्म की स्मृति होने पर मनुष्य का वर्तमान जीवन बहुत दुखपूर्ण हो जायेगा। सत्य को सफल करने के लिए क्या एक ही घटना उपयोगी है। सब कुछ क्या सत्य को ही नहीं सफल कर रहा है। "रूकिया बुढ़िया' कहानी में उन्होंने अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है कि भारतीय दर्शन में पुनर्जन्म की परम्परा स्वीकार की गई है। आधुनिक युग में ऐसी अनेक घटनाएं घटती हैं, जिससे पुनर्जन्म की सत्यता का प्रमाण मिलता है, किन्तु जैनेन्द्र दो-तीन घटनाओं को सत्य की सिद्धि के लिए उपयुक्त नहीं मानते। उनकी दृष्टि मे जो कुछ है, सब सत्य है, सत्य में घुल-मिल गया है। जैनेन्द्र यह स्वीकार करते हैं कि इस जीवन के बाद क्या होगा-यह कोई नहीं जानता। वर्तमान में तो व्यक्ति यही सोचता है कि जो जैसा करेगा उसे उसका वैसा फल अवश्य मिलेगा। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में मृत्यु-सम्बन्धी धारणाओं में उनके गहन चिन्तन की छाप है । जीवन और मृत्यु के रहस्य को उद्घाटित करते हुए जैनेन्द्र ने व्यवहारिक जीवन में व्यक्ति की मृत्यु-सम्बन्धी धारणाओं को अपनी रचनाओं द्वारा व्यक्त किया है । उन्होंने अपने साहित्य में कई घटनाओं को प्रस्तुत किया है, जबकि परिवार में कई सदस्य एक के बाद एक मौत को प्राप्त होते हैं। जहाँ मौत का दारुण दृश्य देखकर यह मानना पड़ता है कि मृत्यु अकाट्य सत्य है। संसार मिथ्या है। जैनेन्द्र ने 'अनन्तर' में सत्यता के विषय में बतलाया है कि 'मौत एक द्वार मात्र है, केवल ईश्वर सत्य है। एक चला जाता है और दूसरा जाने के लिए तत्पर है, किन्तु मनुष्य का कर्म हमेशा जीवित है और लोगों को तो मृत्यु पाना ही है। अतएव एक मात्र वही सत्य है और वह सत्य है- ईश्वर ।' उनके अनुसार मृत्यु जीवन का अनिवार्य सत्य है। उसकी कल्पना से जीवन को बहुत शान्ति मिलती है। 'इतस्ततः' में जैनेन्द्र ने [136]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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