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जैनेन्द्र का जीवन दर्शन - डॉ० कुसुम कक्कड
जैनेन्द्र के उपन्यासों में शिल्प - ओम प्रकाश शर्मा ।
उपन्यासकार जैनेन्द्र और उनके
श्रीवास्तव
उपन्यास- डॉ० परमानन्द
उपन्यासकार जैनेन्द्र : मूल्यांकन और मूल्यांकन - डॉ० मनमोहन
सहगल
इन पुस्तकों में जैनेन्द्र के रचनात्मक साहित्य का मूल्यांकन करते हुए विभिन्न महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों की ओर संकेत किया गया है। किन्तु अभी तक जैनेन्द्र की समग्र कृतियों का विवेचन करते हुए युग के सन्दर्भ में उनकी जागरूकता और प्रगतिशीलता का, अर्थात् उनकी युग चेतना का पृथक् रूप में व्यापक और सर्वांगीण विवेचन अभी तक नहीं हुआ है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध इसी अभाव की पूर्ति की दिशा में एक विनम्र प्रयास है।
प्रस्तुत शोध-प्रबंध को छः अध्यायों में विभक्त किया गया है। अध्याय एक का शीर्षक है 'साहित्य और युग चेतना : अन्तर्सम्बन्ध' । साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है, यह बात कथा-साहित्य के सम्बन्ध में और भी अनुकूल लगती है। कथा - साहित्य मानव जीवन की निकटतम विधा है । वह मानव जीवन की धरोहर है, उसका सजीव चित्र है । मानव जीवन की आरंभिक रूपरेखा का विधान कथा-साहित्य में ही मिलता है, जिसका प्रगाढ़ सम्बन्ध युग होता है । कथा-साहित्य में युग का सर्वांगीण रूप सुरक्षित रहता है। उसकी विवेचना कर हम युग का परिचय प्राप्त कर लेते हैं । कथाकार अपनी कथा के माध्यम से अपने दर्शन एवं लक्ष्य को प्रस्तुत करता है। उसका यह दर्शन एवं लक्ष्य युग चेतना से जुड़ा होता है । कथा - साहित्य मानव - चरित्र एवं उसके यथार्थ जीवन के कार्यों की
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