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केन्द्र बनाया है। उनके कथा-साहित्य में मनुष्य के दिन-प्रतिदिन के जीवन-व्यापार से अधिक उसमें निहित आंतरिक सत्य की ओर दृष्टिपात किया गया है। उनके उपन्यासों तथा कहानियों में आधुनिक युग के मानव की मनोगत् समस्याओं जैसे-काम (सेक्स) तथा विभिन्न मानसिक द्वन्द्वो का चित्रण किया गया है। जैनेन्द्र हिन्दी साहित्य के ऐसे पहले समर्थ कथाकार हैं जिन्होंने अपने कथा-साहित्य मे सेक्स (काम) को अध्यात्म मार्ग में बाधक नहीं अपितु अध्यात्म मार्ग की एक सीढ़ी माना है।
__ जैनेन्द्र का कथा-साहित्य युग चेतना का संवाहक है। उनके कथा-साहित्य में युग चेतना का सर्वत्र बोलबाला है। युग के गतिशील धरातल पर जीवन के साथ घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित करके साहित्य की रचना करने वाले जैनेन्द्र विशिष्ट कथाकार हैं। उनके कथा-साहित्य में युग का स्वर ही सर्वाधिक मुखर है।
जैनेन्द्र के कथा-साहित्य का पर्याप्त अध्ययन हुआ है और कई शोध-प्रबंध एवं समीक्षात्मक ग्रंथ प्रकाश में आ चुके हैं, जिनमें प्रमुख
1.
जैनेन्द्र और उनके उपन्यास-रघुनाथ शरण झालानी
2.
जैनेन्द्र : साहित्य और समीक्षा-रामरतन भटनागर
जैनेन्द्र-व्यक्ति, कथाकार और चिन्तक-बॉके बिहारी भटनागर
4.
जैनेन्द्र के उपन्यासों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन-डॉ० देवराज उपाध्याय
जैनेन्द्र के उपन्यासों का मनोविश्लेषण-परक शैली-तात्विक अध्ययन-लक्ष्मीकांत शर्मा