________________
जीवन-सत्य प्राप्त किया, उसे उन्होंने एक विद्वान साहित्यकार की भॉति अपने साहित्य में व्यक्त किया। जैनेन्द्र जी नियतिवादी दर्शन से प्रभावित थे। नियतिवादी विचारकों के अनुसार यदि व्यक्ति के जीवन के भूत और वर्तमान को ज्ञात कर लिया जाये तो उसके भविष्य के सम्बन्ध में निर्णय दिया जा सकता है। व्यक्ति के चरित्र की समस्त जानकारी कर लेने पर उसके आचरण के बारे में कहा जा सकता है। नियतिवादी विचारक व्यक्ति के आचरण और प्रकृति को एक नियम द्वारा ही चलाते है।
जैनेन्द्र के विचारों और नियतिवादी दार्शनिकों में प्रमुख भेद यह है कि जैनेन्द्र के पात्रों की सम्भावनाएँ नियति के कारण विनष्ट नहीं होतीं। उनके साहित्य की सर्वप्रथम विशेषता यही है कि वे पात्रों को भाग्य के सहारे छोड़ देते हैं और भविष्य के सम्बन्ध में, व्यक्ति के चरित्र के सम्बन्ध में कोई भविष्यवाणी नहीं करते। नियतिवादी भविष्य की घोषणा कर देते हैं, किन्तु जैनेन्द्र जी के अनुसार भविष्य में क्या होने वाला है-यह कोई नहीं जानता। उनके अनुसार ब्रह्म सर्वव्याप्त है
और वही भूत, वर्तमान और भविष्य का ज्ञाता है। इस प्रकार उनके पात्र भाग्यवादी होते हुए भी अपने जीवन की सम्भावनाओं का शोषण नहीं करते।
आस्थामूलक भाग्यवादिता
जैनेन्द्र जी आस्तिक, विचारक और लेखक हैं। उनके साहित्य मे अटूट ईश्वरीय आस्था का परिचय मिलता है। मनुष्य का निर्माण करने वाला ईश्वर है। ईश्वर से ही मनुष्य परिचालित होता है। उनके अनुसार जीवन के सम्बन्ध में व्यक्ति का समस्त मन्तव्य समुद्र के तट पर कौड़ियों से खेलने वाले बालकों के निर्णय की भाँति है। फिर भी बालकों को मस्तिष्क मिल गया है। वे दोनों निष्क्रिय होकर तो रहते
[130]