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जीवन का उद्घाटन किया है जो हर तरह से सम्भ्रान्त दीखते हैं, जिन्हें देखते ही उन पर आदर आना स्वाभाविक है। उनके जीवन में, उनके मन में शंका का भाव नहीं प्रकट होता, बल्कि थोडी आमदनी होने पर भी वे ऊपरी आमदनी के सहारे लम्बे खर्च करते हैं और बडे गर्व के साथ कहते है कि तनख्वाह बीस रूपये से ही शुरू हुई थी, लेकिन उसी के भरोसे कौन रहता है। ऐसे व्यक्तियों के प्रति जैनेन्द्र जी के हृदय में घृणा और घोर वितृष्णा है जो उनके कथा साहित्य में व्यक्त हुई है। 'आतिथ्य' कहानी में जैनेन्द्र ने एक ऐसे व्यक्ति का चित्रण किया है जिसकी दृष्टि में मुनाफा और स्वार्थ प्रमुख हैं और मित्रता गौण है वह अपने आमंत्रित अतिथि (मित्र) को अपनी गौशाल (डेरी) आदि के सम्बन्ध में सविस्तार परिचय देता है, किन्तु अतिथि सत्कार के नाम पर मित्र के बच्चों को छटाँक भर दूध देने में वह अपनी असमर्थता व्यक्त करता है। प्रस्तुत कहानी द्वारा जैनेन्द्र जी ने व्यक्ति की स्वार्थी मनोवृत्ति का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है। 2 जैनेन्द्र जी ने आर्थिक वैषम्य का व्यापक चित्रण अपने उपन्यास 'कल्याणी', 'सुखदा', 'मुक्तिबोध', 'अनन्तर और 'अनामस्वामी' में भी किया है। 'कल्याणी' में आर्थिक परिवेश कल्याणी एवं डॉ. असरानी के बीच ‘केरीज्म' की विषमता में, सुखदा की पुत्र को पढ़ाने की महत्वाकांक्षा में चित्रित है। आर्थिक वैषम्य का परिवेश पीढ़ी भेद के रूप में 'मुक्तिबोध' और 'अनन्तर' उपन्यासों में उपलब्ध होता है। आर्थिक वैषम्य का परिवेश प्रकारान्तर से ‘सुखदा' उपन्यास में सुखदा की गृहस्थी का विघटन करता प्रतीत होता है। आर्थिक वैषम्य का दूसरा चित्रण 'मुक्तिबोध' में वीरेश्वर के माध्यम से और 'अनन्तर' में प्रकाश के माध्यम से प्रकट होता है। 'अनामस्वामी' में शंकर उपाध्याय के आश्रम के लिए कुमार और रानी वसुन्धरा अपनी जमीन देते हैं।
61 जनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ -34-36 62 जैनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ – 115
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