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________________ विभिन्न स्रोतों की ओर दृष्टिपात किया है । मनुष्य को जानवर समझने वाली अंग्रेज जाति की ओर भी उन्होंने इंगित किया है। इस कहानी मे कथाकार ने विषमता का वह चित्र प्रस्तुत किया है जिसमें सम्पन्नता के कारण आवश्यकता से अधिक सुख सुविधा प्राप्त करने वाले कुछ व्यक्ति हैं और कुछ ऐसे हैं जो या तो साहब की मार से मर जाते हैं अथवा नैनीताल की पहाडियों में ठंडक से सिकुड़कर प्राण त्यागने को विवश होते हैं।" जैनेन्द्र जी की दृष्टि में व्यक्ति के बीच अप्रेम और घृणा की गहरी खाई उत्पन्न करने का एक मात्र कारण धनी वर्ग का झूठा दिखावा और प्रतिष्ठा है। यही कारण है कि जैनेन्द्र ने अपने कथा साहित्य में प्रतिष्ठित माने जाने वाले व्यक्तियों को ही विशिष्टता नहीं प्रदान की, उनकी दृष्टि में गरीब व्यक्ति भी अपने आत्मा की उच्चता के कारण प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त करने का अधिकारी है। अमीरी पाप नहीं, किन्तु अमीरी के मार से व्यक्ति की नैतिकता और आत्म-चेतना का पतन हो जाना पाप है । धनिक समाज में चोर, बेईमान, चरित्रहीन व्यक्ति की सही पहचान नहीं हो पाती, क्योंकि वे पैसे के बल पर ईमानदार और चरित्रवान बने रहते हैं । जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में ऐसे समाज मिलते हैं जहां सज्जनता के पीछे दुष्कर्मों की गन्ध मिलती है। जैनेन्द्र जी की 'एक टाइप' तथा 'आतिथ्य' कहानी में इस प्रकार के समाज मिलते हैं । 'एक टाइप' में एक ऐसे व्यक्ति का परिचय मिलता है, जो सचमुच टाइप ही है। वह रेल में सफर करते हुए पूरे समय तक 'शान्तकारम् भुजगशयनम्' का पाठ अपने ढंग से करता है ।" उसको देखकर कोई भी यह विश्वास नहीं कर सकता कि उसकी सज्जनता के पीछे कोई दुष्कर्म हो सकता है। जैनेन्द्र जी ने अपने साहित्य में ऐसे व्यक्तियों के 59 वही, पृष्ठ - 89 60 जैनेन्द्र कुमार जैनेन्द्र की कहानियाँ, पृष्ठ - 37 [116]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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