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(खण्ड
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जैनेन्द्र के कथा साहित्य में आर्थिक चेतना
समाज के निर्माण में आर्थिक चेतना का अत्यधिक महत्व है। किसी भी राष्ट्र के सामाजिक जीवन के विकास में आर्थिक चेतना का अपना निजी महत्व होता है, क्योंकि आज के युग में अर्थ का महत्व ही अधिक है। समाज में व्यक्ति के उचित स्थान का निर्णय उसकी आर्थिक स्थिति से किया जताा है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि किसी देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों से कहीं अधिक प्रभावशाली उसकी आर्थिक परिस्थितियाँ होती हैं।
साहित्य का प्रमुख स्रोत समाज है। कथाकार वैसे तो साधारण व्यक्ति होता है, परन्तु उसकी चिन्तन शक्ति एवं संवेदनों को ग्रहण करके उनके अभिव्यक्ति की कला सामान्य जन से भिन्न हुआ करती है। कथाकार समाज में रहते हुए समाज से प्रभावित होकर समाज के लिए सृजन करता है। समाज व्यक्ति रूपी इकाइयों का एक संगठन है तथा व्यक्ति और समाज के विकास का आधार आर्थिक चेतना ही है। जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य में आर्थिक चेतना का भी विशिष्ट महत्व है। जैनेन्द्र जी अमीरी और गरीबी के भेद को स्वीकार करते हैं, उनका विश्वास है कि समाज में यह कदापि सम्भव नहीं है कि प्रत्येक को समान आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त हो सकें क्योंकि इसके मूल में व्यक्ति प्रकृति की एक दूसरे पर अधिकार करने की भावना विद्यमान है। जैनेन्द्र जी का आर्थिक दृष्टिकोण स्वतन्त्र है। जहां वह अमीरों पर व्यंग्य करते हुए गरीबों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते दिखायी पड़ते हैं, वहीं वह किसी वाद से प्रभावित नहीं है। जैनेन्द्र जी ने किसी आर्थिक सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया, बल्कि सामाजिक जीवन में
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