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________________ वह मुसाफिर मंजिल को माने नहीं बैठेगा। मुझे तो यह लगता है कि जो मंजिल को जान गया वह कभी भी मंजिल तक पहुॅचा नहीं ।" 55 जैनेन्द्र के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति संसार के त्याग में नहीं वरन् उसके सहर्ष स्वीकार में है। जैनेन्द्र के अनुसार 'ज्ञान', 'कर्म' और 'भक्ति' साधना के ये तीन वर्ग समझे जाते हैं। ये तीन रहते होंगे तब मुक्ति कैसे मिलती होगी, मैं नहीं जानता । " ज्ञान, कर्म और भक्ति की समग्रता में ही जीवन का लक्ष्य पूर्ण होता है। जैनेन्द्र के अनुसार मोक्ष का अभिप्राय संसार से मुक्ति नहीं, बल्कि अहं से मुक्ति पाना है। जैनेन्द्र के अनुसार मोक्ष में कर्म से मुक्ति नहीं बल्कि कर्म के लिए प्रेरणा मिलती है। जैनेन्द्र ने अपने संग्रह 'समय', समस्या और सिद्धान्त' में स्पष्ट स्वीकार किया है कि मुक्ति वास्तव में अहं से मुक्ति है। जैनेन्द्र के अनुसार मोक्ष के रास्ते में मुक्ति बाधा नहीं है। वह सिर्फ रूकावट मात्र है । जन्म-मरण के क्रम में मोक्ष के लिए यात्रा निरन्तर चलती रहती है, क्योंकि मोक्ष के सम्मुख सब निरर्थक है । जैनेन्द्र मोक्ष के ठिकाने पर पहुँचने के लिए धीरे-धीरे चलना आवश्यक मानते हैं। जैनेन्द्र मोक्ष की प्राप्ति के लिए चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को आवश्यक मानते हैं। उनकी दृष्टि में धर्म के द्वारा अर्थ और काम के रास्ते से चलकर ही मोक्ष का ठिकाना प्राप्त हो सकता है। जैनेन्द्र जीवन के संघर्ष से भागकर मिलने वाले मोक्ष को ठीक नहीं मानते। 'बाहुबली' कहानी में बाहुबली अपने तन को तपस्या के माध्यम से अस्थि मात्र कर लेने पर भी कैवल्य नहीं प्राप्त कर पाता है । जबकि उसका भाई राज्यभोग करते हुए भी मोक्ष की प्राप्ति करता है । वस्तुतः जैनेन्द्र के जीवन, धर्म, दर्शन सबका सार है-अहं से मुक्ति । अहं से मुक्ति पाने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है । यही जैनेन्द्र की धार्मिक चेतना का तत्व है । 55 जैनेन्द्र कुमार - समय और हम पृष्ठ - 209 56 जैनेन्द्र कुमार - प्रश्न और प्रश्न, पृष्ठ -48 [113]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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