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को पुष्टि मिलती है। जैनेन्द्र जी ने गाँधी जी के महान व्यक्तित्व को अपने कथा साहित्य में निरूपित किया है, जो युगीन सांस्कृतिक चेतना की झॉकी तो प्रस्तुत करता ही है और साथ ही युगीन दृष्टिकोण की अभिव्यंजना भी करता है।
वर्तमान युग में जीवन की कठिनता और विषमता को कथा साहित्य के अलावा अन्य किसी विधा में निरूपित नहीं किया जा सकता, क्योंकि महाकाव्य और कविता हृदय की सहज भावानुभूतियों की अभिव्यंजना है। जीवन रस की अभिव्यक्ति होने के कारण इसमें बुद्धि नहीं हृदय की प्रमुखता होती है। साहित्यकार युग जीवन और युगीन चरित्रों को प्रतिपाद्य बनाकर उच्च ग्रन्थकारों की श्रेणी में स्थान बना लेता है। आज के मनुष्य तथा उसके जीवन को कथा साहित्य के माध्यम से ही सम्यक रूप से व्यक्त किया जा सकता है। आज का कथा साहित्य युगीन संस्कारों से आक्रान्त ही नहीं, वरन् संस्कृति से अपना गहरा रिश्ता जोड़कर अपने समय के सांस्कृतिक तत्वों की अभिव्यक्ति में व्याकुल दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि कथा साहित्य को जानने के लिए तत्कालीन सन्दर्भो का विहंगावलोकन करना उपयोगी होता है। जैनेन्द्र जी के कथा साहित्य की सांस्कृतिक चेतना का अध्ययन इसी परिप्रेक्ष्य में किया जायेगा।
जैनेन्द्र के कथा साहित्य में सांस्कृतिक चेतना का स्वरूप
जैनेन्द्र के कथा साहित्य का प्रतिपाद्य दीर्घ काल की सांस्कृतिक चेतना को अपने में सँजोये हुए हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के बाद और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में एक नवीन सांस्कृतिक चेतना की ज्योति 'परख' उपन्यास में दिखायी पड़ती है। पाश्चात्य शिक्षा ने भारत में शिक्षित और अशिक्षित दो अलग सांस्कृतिक वर्गों का निर्माण किया।
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