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भागना चाहते थे । शायद जरूरत पड़ने पर नाम तक बदलते और दवेछिपे रहने की कोशिश करते । बोलो, इसमे तुम बडाई देखना चाहते थे ? मालूम है, तब क्या होता ? तुम कानून से भागते, और कानून तुम्हे पपाडने पीछे-पीछे जाता । सोचते होगे, कि देश से पार विदेश में जाने से कानून की गिरफ्त छुट जाती। वह बात सच नहीं है। देशविदेदा मय आपस मे ऐसे मामलो में सहयोग करते है। सब देशो मे मोनोगेमी है। दुप्पी वेटे, तुम समझदार हो। इस साल एम० ए० हो जानोगी । तुम्हारी कोई स्वतन्त्रता मैं तुमसे छीनने वाला नहीं हूँ। लेकिन तुम्ही उग स्वतन्त्रता को अपने चारो तरफ से काट कर अपने को कंदसाने में डाल लो, तो इसमे मैं तुम्हारी कोई सहायता नही कर सकता। तुम वही करने जा रही हो। सच के प्रकाश से फटफर तुम झूठ के अधेरे में ही छिप कर अपना स्थान बनाने को रह जाती, और इसकी अनुमति मेरे पास से पा न सकती । अव भी देखो कि तुम बाल-बाल किरा नरम की सभावना से बची हो। मैं पूछता हू, क्या है कि वह
आदमी माज भी मेरे सामने नहीं पाता है ? जब पता चला, उसी क्षण से वह मान्नी माटता पिता है । यह प्यार है, जो ज्योतिप्क और उग्रीव होता है ? मैं समभना ह, द्रौपदी, कि तुम पहचानोगी कि यह वह चीज है, जो मुह टिपाकर रेंगने को प्रवेरी सीली गरियो और मोरियो को इलती है । यह प्रेम नही हैं, कि जो एकमार पुण्य है। यह दम्भ और एल है, जो निरा पोर पोरा पाप है।" ___ "पाप " द्रोपदो ज़ोर से यह शब्द माहकार, हमपी-बपको गी अपने पिता को देखती रह गई। फिर अपने भीतर जाने कहा से गस्ति खोपती हई चोली--"प्रेम पाप नहीं होता, वाबू जी।"
राम पुगार ने अतिशय स्नेह से रहा-"ठीक कहनी हो, बेटी ! प्रेम पाप नही होता । पाप है, और गोलिए वह प्रेम नही है।" __ "चावू जी, मैं मापने हाथ जोड़ती है। मुझे गध-कुछ दीन रहा है। लेकिन एमा बार आप उन्हें बुला दीजिए। घामको सामने पूछ कर मैं