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जनेन्द्र को महानिगा दनया भाग अपने मन में भरछी तरह जान लेना चाहती , कि गया जो था, वह राय भुव मा । नहीं, वह गझरो मनरी मह रायते । मेरो पालो में देतार वह मनही बोल मरते, मभी नहीं बोल गरो।"
"पापको विचान नहीं होता?"
"अविश्वास की बात नहीं है, बेटी। विस्मय पारी है गिगम चीसी गयानी को नही दीख रहा है, कि इस मारे मामले के गीतरागा पीया है।" __ "दीग रहा है, पाबुजी । दीगने लग रहा है। भाप उर युनाए नो। जो मुझे अब कुछ-कुछ दीन रहा है, देगी नि उसी को यह देगने से रो पनसार पारते हैं। माप पहने थे, कि उन्हें जिद है।" ___"हा मुझे बताया गया है. कि जिद ही है। यह उम गरसे में पान नही पाना चाहना, जिसे सीधी गापा ले अपराप गा रास्ता गहना चाहिए । तुम्हारी यणा से मैं हाय मीने हुए है, नहीं तो पागप शो रोपने लिए मानन ने जो बातें तैयार पर नमी हैं, पर गाय बगर उनको दबोच नँगी, मैं कह नही पता। ताही बनामो, जिद गागरा जान हो भी गया गरता है?"
मैं वानिगह, पिता जी । मोर बालिग लोगों को पतलता पर पोई माननाय नहीं थाल माता !"
गम कगार का नारा मनीन हो पाया । मो-नगम पती-रिमोमासर गुम गामाती हो, शिगान मे बारे में लग गही मोती। वन में नारी जाता और प्रभागा गोगों को अगवा न पाया, मगर गीत मनमानी । यमन मारा हरीर भरना
नागीनीया, गोयना मेशित मगर दर गगम दर न , मोरगपागामा पाने में बतौर राना गा ET, गोगा ranी मोरा गाना भीनों पिना गरी