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ये दो
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महाशय राम कुमार का चित्त पसीग गया। उन्होंने बेटी की बाहो को अपनी जाधो पर रो गोनकर उसे उठाते हुए कहा-"उठो, बेटी । सामने बैठो। हा, ऐसे।" उसी की पोती का पल्ला लेकर पासुनो से भरे उसके चेहरे को पोछते हुए कहा----"स्वरथ हो के बैठो, बेटी । तुम पटी-लिसी हो, और अब एम० ए० हो जायोगी। माफ करो कि मेरा हाय तुम पर उठ गया था। अब समझता हू, कि वह गलती थी। क्योकि तुमने झूठा प्राचरण किया भी था ! तो उसके भीतर सच है, यह समझ फर किया था। समझा था तुमने कि प्यार की रक्षा कर रही हो, और जहा दुस है यहा सुत्व की सृष्टि करने मे अपना विसर्जन कर कर रही हो । अब मैं समझ पाता है कि क्या चीज़ तुम्हे दृढता दे रही थी। मैं जिद समझता था, पर जिद को भी जो एक यान थामे हुए पी, उसको मैंने नहीं देखा था। अब वह अन्याय मुनरो न होगा। लेविन, बेटी, अव मैं तुम्हारी सच्चाई को देखता हूँ, तो तुम्हे बतला भी मपाता है, कि तुम भूल में थी, और झूठ में थी, कि तुमने एक नही, दो नहीं, पूरे भार महीनो से हम लोगो से झूठा व्यवहार रसा, हमे भूठा पाश्वासन दिया। और इसमे उस पादमी ने तुम्हे उपासाया, जिसगो तुम गहती हो कि प्यार पानता और चाहता था । सोचोगी तो पता भरोगा कि यह सब कितना मिच्या व्यापार था। प्यार तो रामगुर गुच में भी बज सच होता है। अगर उसमें घर मा मिला, मोर उसकी बगह से झूठ गौर पोरी भी मा गई, तो सोचो कि गया यह मूत में प्यार भी रहा होगा? या कि यह असल मे छत ही होगा?.. बिमला के लिए उसने कहा कि यह सभी उनकी कोई या कुछ भी नही रही । बारह वर्ष से यह स्ना सार देती रही है। हम राव ने देगा: जिउनी जैमो परायणा पस्निपा धान तौर पर नही होती "तुम पोमपने घर में कुल पोर पोरी मा पाचरण पाराता रहा, जो स्पर्ग मापने पर में भूत का व्यवहार करता रहा, फिर जो तना लन बना हि परायणाली में दुरस की तरफ से विमुख होकर उसकी