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जैनेन्द्र की कहानिया दम भाग
"क्या कहते हैं ? बोलो न, चुप क्यों हो गई ?"
"नहीं । नहीं, नहीं । मैं भाभी जी के दुगका कारण नहीं बनूंगी। लेकिन वह कहते है-"
कुछ स्वर मे पिता ने कहा- "यही तो पूछ रहा है, पिता है वह ""
उच्छ्वास धीरे-धीरे समाप्त हो चुका था, और पेहरा भी हाथों से टका नही रह गया था । द्रोपदी जोर लगा हुए महा"हते है वह, कि यह मेरी कोई नहीं है । कभी कुछ नहीं की है। मेरी फिक्र उसे क्या है? उसने अपना सहारा पा लिया है। 'मेरा कोई नही है । मा नही है, बहन नहीं है, भाई नहीं है। बाप है, और यह नहीं से भी नहींतर हैं । में है, और मेरे चारो तरफ युग होम है।" कहते-कहते प्रोपदी फिर उच्छ्वास से भर गई । उसी तरह बेहरे को हायो मे लेकर सुबक उठी । बोली, "बाबूजी गया यह झूठ है झूठ है ? प्यार झूठ है ? धीर गया में झूठ के यग में थी ? नहीं, नहीं। ऐगा कैसे हो सकता है ? यह बातें, वे वायदे, वे गसमें ।" नहीं, नहीं। सब झूठ कैसे हो गगता है ? राव झूठ नहीं हो सकता है। श्री बाबू जी में बायक मुझे और पोटिये कि मैने झूठ को अपनाया है, योपा माया और योग दिया है। आपको परेशान किया है। लेकिन घी या गा वह वया रेव था? नहीं, नहीं। एक बार घापके सामने पूछ बार जान लेना चाहती है। किराया? सच व एक्दम नया
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कहने यह कुर्ती से नीचे गिर भाई मोद
सगीर पपपपप पर रोने लगी। ही जाती थी- "मुझे पौर मारिये, बाबू जी मोर मारिये में झूठ में गरी
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रही पर गया था? गातो नहीं है। पर ह दीजिये कि यह पाउने एमा होगा ।"