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झमेला..,
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"क्या मगाऊ ? काफी, चाय ?" "ग्रह, छोटो । 'सच, राजेश । प्यार क्या है ? धोखा है ?" "जाके कहता हू, कि जल्दी करे।" "नही, बैठो। पाता होगा । क्यो, मुझे मह नहीं सकते हो ?"
"नही सह सकता । शकल तो देखो | और यह लिवास ! वाह ! क्या कहने है | बम्बई मे यही सीखा है ?"
"तुम विलायत मे क्यो जा बैठे थे ?" "वको मत । मेरे जाने से पहले तुम यह कर चुकी थी।" "कौन कहता है "
"मैं कहता हू । तुमने फोन किया था ? पूछा था ? अव वात बनाती हो ।"
"सच, तुम तेरह को नहीं चल गये थे ?" "नही, सत्रह को गया था ।" ।
सुनकर उसके मुह से लम्बा सास निकला । जैसे गहरी हाय हो । फिर बोली, "छोडो राजेग । अब कहो, तुम्हारे पान या जाऊ ?"
राजेश ने उस अन्धेरे उजाले में सुपी के चेहरे को भन्पूर देवा । प्रश्न मे पारदर्शी ईमानदारी थी । बोला-"सुपमा । तू बक तो नही
रही ?"
'नहीं, बक नहीं रही, तुम जानते हो।" "प्रय कहा हो" "घर मा गई है। एक पांव इनफे यहा भी है जो अभी गये हैं !" "सातो रोज रही थी ?"
"घर आज गई हो ?" " " 'स्वागा मिला?" "नही, योई मुभगे नहीं बोला।"