________________
बेकार
७१
छोटे वाव के हाथ में रहने दो। वह बीच मे है तो उन्ही का जरिया ठीक है । सब तरफ से मुनासिव हो, तभी हममे मे किसी का बढना सही होगा । उससे पहले नही ।"
"क्या तुमने किया है अब तक कोई रिश्ता या टेला- -जो अपनी अक्लमन्दी लगा रहे हो ? ये काम ऐसे नहीं होते। मुझे बतायो, धारीवाल का नम्वर क्या है ?"
"मुझे नही मालूम।" कहकर मे तीर की मानिन्द वहा से चलता हुआ बाहर के कमरे मे आ गया । पर कमरा खाली था । वहा कोई गोविन्द न था ।
लोटकर आया तो श्रीमती जी सचमुच नम्बर के लिए डायरी टटोल रही थी । मैंने कहा, "बाहर कमरे मे कोई नही है । टाइपिस्ट क्या हुआ
२"
श्रीमती जी डायरी टटोल रही थी और टटोलती रही । "तुमने टाइपिस्ट को कुछ कहा था ?"
मालूम होता है कि धारीवाल का नम्बर मिलने में समय लिये ही जा रहा था ।
"सुनती हो, कुछ कहा था
श्रीमती जी ने डायरी से हटाकर अब मुह मेरी ओर किया। कहा"हा, कहा था। तुम्हे तो अपनी तन्दुरुस्ती की फिकर है नही, खासी तब की अब तक चल रही है । श्राराम को तुमने हराम मान रखा है । ऐसा भी क्या काम ? जब देखो तब लिखाई । लिखाई जाय भाव में, सबसे पहले तन्दुरुस्ती है
"" •
मैंने जोर से कहा, "क्या कहा था उस टाइपिस्ट को ?"
"कहा था, भाई आज जाओ, उनकी तबीयत ठीक नही है । प्राज विसाना नही होगा ।"
7"
?"
-
"तुमने यह कहा था
"हा। और शब तुम ग्राराम करो । धारीवाल का फोन भी वाद