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बेकार
"हुकुम आया है कहानी भेजो। बतायो क्या करू ?" “भेज दो कहानी।" "क्या भेज दू ? कहा से भेज दू ? मन ही किसी काम को नहीं
होता है।"
___"क्यो ? ऐसा तुम्हारे मन पर क्या प्रा बीता है ? मुझे देखो, सारी चिन्ता मुझ पर है । तुम्हे वया पि.कर कि क्या चीज क्या भाव आती हैं, बच्चो के लिए दूध कैसे जुटता है । तुमको तो पडे रहना और सोचते रहना है । इस पर कहते हो, मन नहीं करता। अच्छा तुम्हारा मन है । उठो,
और लिखो कहानी । नही तो वे लोग भी क्या कहेगे ?" ___ अब कैसे बताऊ इनको जो चूल्हे-चौके मे रहती हैं, बामन-बुहारी में रहती है । ना तो रिश्तो वाले लेन-देन मे रहती हैं कि ख श्चेव पर क्या बीती, कि चीन के अणुबम विस्फोट का क्या मतलब है, कि वर्तानिया की सरकार पलट कर एकदम दूसरी बन गई है । वगैरह-वगैरह वाते है जो असली हैं और मेरे दिल पर बैठी हुई है। उन बातो के बोझ से अगर वह दिल उठता ही नही है तो उसमे उम दिल की ओर कायल ही होना चाहिए । मैं अपने बारे में बिल्कुल विश्वस्त हूँ कि मेरा दिमाग दूर तक जाता है और बारीक बातो को पडना है, और हर छोटी-मोटी ले-दे से ऊपर रहता है।
"फिर वही | अभी बैठे ही हो ! मगीन लेकर टाइपिस्ट कमरे मे पैटा इन्तजार कर रहा है। वहा कहानी की राह देसी जा ही होगी। विशेपाफ दीवाली तक निकल जाने वाला है। उधर रेडियो पर उपन्यास भी जाना है । और तुम ऐने मुक्त बने हुए बैठे हो कि जैने सब कर