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जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग हैं, या मेरे छोटे भाई के पास ? तुम भी यहा अकेली हो, वह उघर वेहाल है । पन्द्रह साल बहुत हो गया, भाभी । अव गुस्सा थूक दो और पहली वातो को भूल जायो।" ___"भूल गई हू मुरारी | विल्कुल भूल गई हू । कह देना उनसे कि यह भी भूल गई है कि व्याह हुआ था।"
"भाभी " "मुझे तग न करो मुरारी, जानो।"
"मैं अभी आया, भाभी।" कहकर मुरारी उठा और कमरे से बाहर आया ! वाहर रामशरण को सकेत किया कि वह जीने से फिलहाल उतर जाए, इतने वह आकर खवर देगा । रामशरण के चुपचाप जीने से कुछ कदम उतर के चले जाने पर मुरारी अन्दर आया और कहा, "प्रय कहो।"
शारदा ने कहा, "वह दरवाजे पर पाए सडे थे न ?"
"हा, मैंने उनको नीचे भेज दिया है । 'भाई साहब पर भाभी अापका गुस्सा हो सकता है । मैंने तो गुनाह नहीं किया है। मुझे मौका दिया होता।" ___"मुरारी"
"भाभी, आप जानती हैं कि गिरिस्ती मे मुझे एक क्षण का सुख नही मिला है। हर समय का क्लेश और कलह ! आपके रूप ने भाभी, मेरे मन मे क्या जगह ले रखी है, कैसे बताऊ ? कभी नही वहा, आज कहता हू, जब भाई साहब को मैंने खुद ही जीने से उतार दिया है कि " ___ शारदा हसी । बोनी, "मेरे रूप की यह पूजा तुम्हें अब याद माई
"नही भाभी । पहले दिन से जब तुम घर मे आई, मैने तुम्हें देवी की जगह रख कर पूजा है।"
हम कर शारदा ने कहा, "पूजा है न ? बस, अब भी पूजते रहो और जायो।"