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निश्शेष
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रहे, इससे कुछ फायदा है ? भाई अव पहले से बदल गए है।" ___ शारदा ने कहा, "तुम्हारे भाई है-तुम्हारे पास नहीं रह सकते ? मै कौन रह गई हू जो यहा आयेंगे ? मुरारी, तुम लोग उन्हे सभाल लो। उनका चौथापन है तो क्या मेरा नही है ? जाना तो मुझे चाहिए था सहारे के लिए उनकी तरफ । वह चले भी जाए, तो उन्हे वया? लेकिन मैं तो अकेली नही हू और अपने बाल-बच्चो को जैसे बना मैंने सभाला है। नौकरी कर रही हू और जी रही हू । अव मेरी शान्ति मे, मेहरवानी करें, विघ्न न डाले। वच्चो के लिए भी मैंने उनकी तरफ नही देखा है। मैं जानती हू, ये पन्द्रह बरस कैसे कसाले के मेरे गए है । मैं तो तुम लोगो के घर से निकली हुई है। फिर मुझे क्यो पूछा जाता है ? उनसे कह देना, सब ठीक है। यहा आने की, तकलीफ उठाने की कोई जरुरत नही है।"
"भाभी, इतना कठोर नहीं होना चाहिए।"
"तुम भी मुझे दोष दोगे मुरारी ? तो कठोर ही सही। मै अपनी विपदा लेकर तो किसी के यहा नहीं गई । बस, इतना करो तुम लोग कि मेहरवानी करो। और जैसे छोडा है, वैसे ही मुझे अपनी किस्मत पर छूटी रहने दो । मैं और कुछ नही मागती हूँ।"
"तो भाभी, सच यह है कि भाई साहब नीचे ही खडे है ।" "नीचे ?" "कुछ उन्हे भी झिझक थी। कुछ मैने भी कहा कि जरा देखे पाता
"तो उन्हे नीचे ही से ले जायो । देखो, मेरा दिन न खराव करो।"
लेकिन शारदा को नहीं मालूम था। उसकी पीठ थी दरवाजे की तरफ । पर मुरारी ने अपने भाई रामशरण को झाकते वहा देख लिया था और इशारा कर दिया था कि आए नही, ठहरे।
वह बोला-"उनकी नौकरी छूट गई है भाभी ! महीने भर से पुष्कर मे थे । सोचो तुम्ही कि कहा जाएगे ? मेरे पास कब तक रह सकते