________________
লিহহীত্ব
दरवाजे पर देर तक थपथपाहट होती रही तो शारदा घुटनो पर हाथ देकर उठी।
दरवाजा खोला तो देखा मुरारी आए हैं। "नमस्ते भाभी ।" "प्राओ मुरारी " कमरे मे आकर बैठे तो मुरारी ने कहा, "भाई साहब पाए है-"
शारदा ने उत्तर मे कुछ नहीं कहा। उसके चेहरे पर से भी कुछ प्रकट नही हुआ।
"-शाम पाए थे, तभी इवर पाने को कह रहे थे। लेकिन... उनकी तबीयत ठीक नहीं है।"
शारदा चुप ही बनी रही। मुरारी पर जोर पडा । फिर भी वह कहता ही चला गया
"खासी है । तीन महीने से, बताते है, खासी का ठसका चल ही रहा है । मुझे तो हालत अच्छी नहीं मालूम होती । 'भाभी, अब पीछे की बाते-"
शारदा ने दोनो हाथो से घुटनों पर फिर जोर दिया और मानो उठने को हुई । बोली, "चाय लाती हू तुम्हारे लिए।"
नही भाभी, नही । तकल्लुफ की बात नहीं है । वह मेरे साथ ही आ रहे थे। मैंने रोककर कहा कि पहले मैं देख आऊ ।' भाभी, उनके मन मे पछतावा है।"
"किस बात का पछतावा?" "बीती वातो को भुला दो, भाभी । दो तरफ जिन्दगी वखार होती