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महामहिम
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"क्या घवराहट है ? मा कोई मर नही जाएगी।" कहकर महामहिम ने अपने हाथो से उपा के लिए दूसरा कप बनाया । यह प्रावश्यक इसलिए भी हो गया था कि बाहर के दरवाजे पर एक बटलर दीखाया था । कप वनाकर महामहिम ने उसे आगे बढाकर कहा, "लो । ”
यह तो हद ही थी । उपा इस पर उठी और एकदम डर की मारी भागती हुई-सी वहा से चली गई ।
महामहिम मुस्कराकर रह गए । सोच उठे कि नही, श्रादमी ही परस्पर सच नही है | मालूम होता है दूसरी वाते भी सच है । फिजूल की वाते, देश-विदेश जैसी बाते !
जनवरी, '६५