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जीना मरना
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ने इन्तजाम किया था और एम्बुलेंस गाडी दरवाजे पर श्रा लगी थी । पत्नी का मन भी सुनिया को भेजते कट रहा था । पर चिकित्मा को व्यवस्था तो यहां उस तरह की हो नहीं सकती थी, न तिमारदारी का वंशान्ता था | डक्टरों की हर समय की देव-रेग चाहिए थी । इसलिये अस्पताल भेजना भी जरूरी था । दूमरे सच यह है कि गिरनी का सच क्रम नग हो गया था धौर पत्नी पर काम का भार इतना हो गया था कि कुछ दिन में वह गुद टूट जा सकती थी। इसने चारा दूसरा जपा पर अस्पताल की यह यात्रा प्रिय किसी को न हो रही थी ।
जाने के बाद पत्नी ने कई बार बाद रिया श्रीरमीनाघर को भी स्याल बाता रहा। पर जनरल मिलवा में के लिए सिर्फ एक घटा चार ने पातक किन-किन
दूसरे मी घरी में भरथा ।
प्रामि पनि प्या,
गया और नाम भी
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अप में मन र काम किया
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