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जैनेन्द्र की कहानिया पसमा भाग वाद माइयेगा, तो दागिले का इतजाम मैं गरा दुगा।"
"लीन. . ." __ लेकिन जितना ही किया जाय, बात तो उपर गे कट कर म धी।
स तरह मुखिया पत्नी को हाथों मा परी । उमने पति को यह सुनाया, वह मुनामा किया गहे। लेकिन उसके घगरज पी सीमान न्ही जब पान रोज तक सुन्निया घर पर नही मोर पत्नी ने उगमाननी रोया गी, इतनी सेवा की कि मोई ट्रेन ननं भी गती गर तो नी। अजन रोग पा गुपिया ना कुछ सपानी न पी, पेट सफा रहता पा मोर जी प्रधानामा । जीम जर कमी-मानी मानी ! एक बार नौरगगे में दही मोठगी गाट ही उगने गगा ली। सीमार मागती, सभी मुबा। लेपिनीही जनता पा, गीभ पर इन भीगो पो जग लेते ही अन्दर ने पेट रोंकार कर देता कामाने माग हाल था, लेकिन दम्लो पा हान इन उत्साहा। गोया रानी ही नहीं थी, हिनना-तुलनामा दिन होता का। लेशिन जय देशो :पंग नही मिलता पनी गुरनाम श्री गोरजोपर गदे हो , जन गरमाग गे पोती । बैटगर र गोमुनिका पुराने पर उगना रन नाना, सम यान गमा। दरसोई माने घरहनी नी, नगिन और पनियों ना हो गावगम दिपा किन गरे म व नीना गुपिता कमा नाम freीवी पिन पलीका परमी पन्न मगर उनीने मारी गा मावि पर मरना सी मारनी।
पाई नानी पड़ी और है। जिसमें गली माग