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जैनेन्द्र की पहानिया दमवा माग
"सर माप एस० एम० पो फोन तो कर दीजिये।" "वह तो मैं अभी कर रहा है।"
"तो देखिए, में सुद पा रहा हूं। फोन के अलावा मैं आपसे एक पुर्जा भी ले लूगा । अमल में केस काफी सराव है, नहीं तो तपतीफ न देता।"
डिप्टी साहब के यहा पहुच कर अपने नामने एम० एम० फो जो फोन कराया तो मालूम हा फि निस्सा ही दुसरा है। मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया है । मज साम नहीं है। दवा बता दी गई है, घर पर रहकर इस्तेमाल करती रहे, ठीक हो जायेगी।
लीलाधर अजव चपकार में पड़े । हालत उन्हें जीने-गरने को दासतों थी। इधर अस्पताल में यह सवर पा रही थी!
डिप्टी साहब ने मजबूरी जतलाई । लीलाधर ने उन्हीं मे पूछा कि बताइपे, गया किया जाय ? बोले, "टागटर मेहरा, हेल्प चार्ज हैं। यह चाहें तो कर सकते हैं।"
"तो जरा उन्ही ने पूछ पर देस नोगिये।"
टिप्टी साहब के पी० ए० ने मालूम फिया को महरा चीफ कमिस्नर के यहा गये हुए थे। पब तक पायेंगे, गुछ टोग पहा नहीं जा समता । टिटी नाहब ने अपनी तरफ गे और मातम गन्फे बताया कि मेहरा दफ्तर एक बार मागे जार ! भार नही तो बाद मार र सहो । जारी रामगत हो तो पाप इतजार गार गमत है। गया उनमें माफिस में पहला दिया जाय कि पाते ही गहा नपरी गपहास मगीन माप नगमते हों तो जरा इन्तजार गार नाही मुनासिव होगा।
लीसापर ने गहा, "ठीप है, जरा इतजार ही कर लेगा। मार देगली गली है, कोई बात नहीं, चरा दाम ही पा जायेगा।"
मया पार हो गया । मापार में मगर मोने लगा। बार से अगर रहा था । दिप्टी मात्र भरने मागने नी पालो पर और सामने ना ग पर गा गो गant पर