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जैनेन्द्र की कहानिया दरावा भाग तुम्हारा घर है, परिवार है। भावना मे अवश्य सब एकाकार हो जाता है, लेकिन भावना ते यथार्थता कटती नहीं है । यथार्थता के तल पर भेद भेद ही है । और ये भेद जब भावना डलती है इतने उभरते और चुभते है कि उस कप्ट को बचाना ही चाहिए । मर्यादा ये समाज की है इसलिए नहीं, बल्कि इसलिए वि वे यथार्थताए हैं उनमा ध्यान रखना पड़ता है । आज भूलने से जो कल उन्ह फिर याद करना पर जाएगा तो वह याद सहज न रह जाएगी, तीसी वन पाएगी । इसलिये यदि कुछ कहता हूँ तो पाहता हू । बुरा न मानना ।
उसके जीवन की सोचती हो कभी यि जो तुम्हें प्यार करता है और जिसे तुम प्यार करती हो? अभी नया सिलता जीवन है उगया। तीस वर्ष की उमर होगी । पित्तना सुन्दर नौजवान है। देखते ही मन मुग्ध हो जाता है । तुम्हारी पास उस स्प पर मोहित हुई, तो ये मासे कौन हैं जो नही होती होगी ? और उस युवक ने लिए मेरा मन पराहना से भर जाता है । जव देखता हूँ कि उसने तुमको चुना, और जबकि इतना ससार उसके सामने सुला पडा है । तब भी तुम्ही पर टिका हुधा है । अब सोचो विमल, उसकी तरफ से सोचो । उसको पया अपना घोसला या बनेरा नही चाहिए ? बाम तो ठीक है, लेफ्नि गत गो अगर उसे कुछ हो जाए, क्या इस प्रदेशो में तुम अपने बच्चों के पास सोने से इन्कार कर दोगी? नुनो विमल, तुम्हारी सुन्दरता कर सक योगी ? उमर का अन्तर क्व तक दबंगारन यथावंतानो पो फली न पभी पहचानना ही होगा। भूले रहने में जब तक पनना है, तभी तक चलता है । अन्त तक नहीं चलेगा ! नहीं चलेगा, नहीं बनेगा।
लेकिन तुम अपने लिए सोनो ही गयो ? मानता है तुमने दह कीमिया मिद कर ली है कि यौवन तुमने कभी उतरेगा ही नहीं । उमग सदा ही बनी रहेगी। जादू टगा नहीं, तुम्हारी मानी गे यमा ही रहेगा। लेनि गोचो उसोफ में । ग्या में भी बनेकी जालन होगी जिस पर पाने ला दोन मरे और बारे में निग