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छ. पर, दो गा' पाप नहीं है ! फिर ऐमा न कीजिए कि पाप पैदा हो और मेरा मन मुझे ही हका मारने नगे । प्रापकी चिट्टी मुझे इसीलिए डराती है। मेरा दिन मढे में निकल जाता है और उसकी पामे जो मैं इस घर में नही, उन पर में बिताती है, मुझे अपने दिन से विही नहीं मालूम होती। फिर यह आप क्या लिख रहे हैं ? कहीं तो किमी को कुछ शिकायत नहीं है । मन तक में नहीं है।
मैंने पापा पाग्रह-पूर्वक अपने उस पर में क्या इसलिए बुलाया पा, गया पाप भी उत्सुकता पूर्वक इमनिए पाए थे, कि मेरे मन मे सराय पा कीडा डाल दे ? नहीं, नहीं ! मैं यह नव नहीं लेना चाहती ! उहानुभूति नहीं लेना चाहती। प्रसन्नता हो वीप है। वही धापस में नी दी जाती है। हमारी प्रसन्नना मे गे अगर आप प्रसन्नता ही लेकर गुप्ट हो तो हमे याद रगिए । नहीं तो भूल पाए ।
पापको, विम्मी
प्रिय दिगल !
गुमने मुझे ठीक निक्षा दो ! यही नो पता था कि उमर से मकान नहीं पाती ! यहे गतीहत देने लग जाते हैं। पह नहीं सोचते कि यह परे गो जिन्दगी में दाल देना हो सकता है ।
पिन विग्मी, में नामाश्मिता भौर नंतिपता को बिल्कुल नही गोपन नीति समाज सनी मन्त्री पी है कि गुमने गा नुमने ₹। सो समोर यद धनोपानिए उन निन्ना मे मैं मर रहा कमानी रहा है, या त गपभी न चना । बात दूसरी है और यह पर मैं मारेपारमानिया का विका, गे पोर पर हो गए धौरान मद
मोहमपी अगर भने रातरिम दाम की हम पानी में घर पर न होगी !