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६८ जनेन्द्र को कहानियां [सातवां भाग] जाय ? नहीं, जीवन की यह हार चिरकालीन नहीं हो सकती । जीवन का कुछ अर्थ ही नहीं, अगर मौत उसके आगे फुलस्टाप की तरह आकर बैठ जाय । इसलिए मृत्यु स्थायी वस्तु नहीं है। प्रकृति हमें इसलिए नहीं जिला सकती कि पीछे से हमें मार देना है। कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है जो हम मरते हैं। नहीं तो मरना अप्राकृतिक होना चाहिए, असम्भव होना चाहिए।" ____ मैंने पूछा, “मौत का खाता बन्द हो जायगा, तो जन्म का सिलसिला भी रोक देना पड़ेगा । नहीं तो धरती पर ऐसी किचमिच मचेगी कि साँस लेने को भी जगह न रहेगी । बच्चे नहीं होंगे, तो स्त्री भी नहीं रहेगी। फिर पुरुष भी ऐसे नहीं रहेंगे । सब मिलकर हिजड़े-से बन जाएँगे। क्यों यही बात है न ?" ... इतनी दूर की बात विद्यास्वरूपजी और ज्ञानविहारीजी ने काहे को सोची होगी। वह सहसा उत्तर न दे सके । ज्ञानविहारी हँस पड़े, और विद्यास्वरूप, जैसे सोच में पड़ गये। वह पी-एच० डी० हैं; इसलिए हर बात को उन्हें हस्तामलकवत् जानना चाहिए, ऐसा उनका खयाल है।
मि० खन्ना एडीटर ने कहा, "होगी, नहीं होगी, इससे हमें कुछ भी मतलब नहीं; पर चीज़ बड़ी खराब है । मेरा वश चले, तो एकदम रोक दू।" ___ मैंने कहा, "मेरी भी यही राय है । इस चीज़ को अभी रोक देना चाहिए। और इसके लिए अभी यह काम करना चाहिए कि अगली बार इस मनमाने परमात्मा को खींचकर जब अपनी मर्जी के मुताबिक वोट देकर परमात्मा बनाने का मौका आये, तो इसके लिए हम तैयार रहें। खूब वोट्स कनवास करें, और मि० खन्ना को उसके लिए चुन डालें। मिस्टर खन्ना गये, कि हमें मौत से छुटकारा मिल जायगा।" - इसी तरह की बातों से हम मौत को पकड़ कर ज़िन्दगी का मजा लेने लगे।