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जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग]
रामदास चुप रहता है। कैलाश फाइल देखने लगते हैं। कुछ देर में
नायर का प्रवेश । वह कुछ झिझक रहा है । कैलाश-(देखकर) आयो । कहो। नायर-मिस सिक्लेअर पाप से कब मिलें ?
कैलाश-लिली न ? आज से उन्हें लीला कहो। इन कागजों से निबट तब भेजना। उनकी व्यवस्था तो सब ठीक है ?
नायर-सब ठीक है।
कैलाश-पाश्रम का खाना उन्हें अनुकूल होता है ? देखो, मेहमान के लिए हमें अपने नियमों का आग्रह नहीं हो सकता। तुम उनसे मिलते रहते हो न?
नायर-जी हाँ। कैलाश-क्या ख्याल है। यहाँ रहेंगी ? नायर-अभी तो आप से मिलने को उत्सुक हैं । कैलाश-(सामने घड़ी देखते हुए) कला का क्या हाल है ?
नायर-वैसा ही है। टेम्परेचर हो पाता है। उन्हें काम से नहीं रोका जा सकता है। हर घड़ी कुछ-न-कुछ करते रहने का आग्रह करती हैं। उन्हें आप कहीं सेनेटोरियम जाने को लाचार करें तो ठीक हो। हमारी किसी को तो सुनती नहीं।
कैलाश-पगली है ! अच्छा, तो अब मुझे छोड़ो। नायर-मिस सिक्लेअर को आप अभी समय दे सकते तो... कैलाश-वह अधीर हैं ?
नायर-जी, कुछ व्यग्र हैं। रुष्ट मालूम होती हैं कि मैं अमरीका से चलकर आई और पाँच रोज से बैठी हूँ, फिर भी आप से मिलन न हुआ। ___ कैलाश-अच्छा तो अभी भेजो। (नायर को वहीं खड़े देख कर) क्यों, कुछ और ?