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टकराहट
पहला दृश्य
[ एक बड़े कमरे का भीतरी भाग । दीवारें सफेद, कोरी | सामान बहुत कम । फर्श नग्न | रामदास के आस-पास कागज फैले हैं, कुछ लिख रहा है, बैठा चटाई पर है, सामने चौकी है। एक ओर मोटा गद्दा बिछा है, उस पर चाँदनी, एक मसनद । पास अलग एक डेस्क । ]
[ कैलाश प्रवेश करते हैं । क्षण-इक दरवाजे पर ठिठककर सब देखते हैं । रामदास सहसा उन्हें देखते ही घबराया-सा उठ खड़ा होता है | ]
! (जोर
कैलाश — नहीं | बैठो - बैठो । राम के दास को घबराहूट से हँसते हैं । रामदास उनके पैर छूता है ।) अच्छा, हुआ । कहो, सब मजे में ? तुम्हारे प्रयोग चल रहे हैं न ?
रामदास - जी हाँ ।
कैलाश - तो महात्मा रामदास बनने की ठानी है !
[ हँसते हुए चलकर बिछे गद्दे पर तकिये के सहारे बैठ जाते हैं । रामदास कुछ कागजों की फाइल लाकर सामने रखता है । ]
- लेकिन उस कोने में मकड़ी के जाले की जरूरत क्यों हुई ?
(हँसते हैं) कल कमरे की सफाई हमारे ऊपर । समझे ?
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