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राजीव और भाभी
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सब सुन्न । "सुनती हो ? चलो, नीचे आयो।" एकदम सुन्न। "सुना नहीं जाता है, कि मुझे और चिल्लाना होगा।"
थोड़ी देर में डरती-डरती आवाज़ में एक लड़की ने कहा, "यों कहती हैं कि उन्हें हटा दो।" __भाई-साहब ने उद्धत रोष को संयत करते हुए कहा, “राजीव, तुम नहीं जानोगे ?" __ प्रा-पड़ी इस विषम परिस्थिति के नीचे राजीव भयभीत हो उठा था। फिर भी मानो उसकी आत्मा आतंक अस्वीकार करना चाहती थी। उसने कहा, "मुझ पर रंग डाला गया था, भाई-साहब । और मैं भरा लोटा नहीं ले जाऊँगा।" ___ भाई-साहब ने भयंकर स्थिर वाणी में कहा, "अच्छा, चलो। वह आती है।"
राजीव चला गया, तब भाई-साहब ने उसी अकम्प स्वर में कहा, "अब चलो, उतरो।" ___उसी लड़की ने ऊपर से कहा, "कहती हैं, आप चलें । मैं भी रही हूँ।" ___ ज़ोर से पैर पटक कर भाई-साहब ने कहा, "फौरन् पाए। सुना ?" और वह उसी भाँति धमकते हुए पैरों से लौट आए।
भाभी एक ही धोती पहने थीं। शरीर के चारों ओर उसे ठीक किया, और जीने के द्वार खोल, वह धीरे-धीरे, डग-डग, चलती चली आईं। किसी के मुंह से एक भी शब्द न निकला।
छज्जा पार किया, कोठा पार किया, उससे आगे के दालान से निकलती हुई, सहन के ऊपर के छज्जे पर से रसोई-घर में चली जावेंगी। दालान के कालीनों पर से भाभी जा रही थीं कि उन्होंने देखा,