________________
२४ जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग] (हैसकर) नया काम तुम्हें और नहीं मिलेगा। मैंने सिफ़ारिश की है कि पुराना छिन जाय । अपने से बैर ठाननां क्यों ? इस बार बाहर जाऊँगा तो तुम साथ चलना चाहोगी ?
चार्ल्स-लेकिन यह तो यहाँ रहना नहीं चाहतीं। कैलाश-यह बात है ! तब तो सब ठीक है । तुम कहो, जी।
लीला~यह खबर देते हैं कि मेरी मां ज्यादा बीमार हैं। मेरे अकेली वहीं हैं। आप कहते हैं न कि मुझे जाना चाहिए ?
कैलाश-तुम्हारे दो भाई भी तो हैं न । क्या वे सेवा में नहीं हैं ? अगर वहाँ व्यवस्था ठीक हो तो तुम्हारा वहाँ जाना बच भी सकता है। वैसे शायद यह जगह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है । यहाँ तुम्हीं देखो, क्या है ?
चार्ल्स-क्या में अनुमान करूं कि आप इन्हें जाने से रोकना चाहते हैं ?
कैलाश-नहीं । बल्कि चाहता हूं कि यह अपने देश जावें । पाश्रमजीवन तो कोई चाहे सब जगह साथ रह सकता है। घर क्या पाश्रम नहीं है ? क्यों लीला ? जाने में झिझकती हो ?
लीला-मैं फिर आ जाऊँगी। माँ के अच्छे होने पर आ जाऊँगी।
कैलाश-जब चाहे आरो। संस्कृत का वाक्य याद है न-वसुधा ही हमारा कुटुम्ब हो । तुम हम सबको कुंटुम्ब जैसा मानो तब तो बात है। मान सकोगी ? क्या अमरीका, क्या हिन्दुस्तान, सब परमात्मा की गोद है।
लीला में मां को देखने के लिए जा रही हूँ।
कैलाश–जोमो ज़रूर । पर यह तो काफ़ी कारण नहीं है । क्यों चार्ली, तुम्हारे रहते क्या मैं इनको यकीन नहीं दिला सकता कि इनकी मां को कोई खतरा नहीं है।