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टकराहट
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लीलाधर चलकर क्या करूँ ?
चार्ल्स-यहाँ रहकर क्या कर रही हो ? अपना परलोक ठीक कर रहो हो ? परलोक को मैं नहीं जानता। लेकिन इस लोक को बिगाड़ने से ही क्या वह बनता है, लिली ?
लीला-तो मुझे ले क्यों नहीं चलते ?
चार्ल्स-ले चलूगा। उसी के लिए आया हूँ। लेकिन तुम्हारी तबियत को यह क्या हो गया है । ऐसी क्यों बोलती हो, जैसी तुम्हारी अपनी कोई इच्छा ही नहीं है।
लीला- यहाँ अपनी कोई इच्छा न रखने का धर्म सिखाया जाता है। चार्ल्स-तभी तो...
लीला-चार्ली, यह गलत नहीं है। इच्छाएँ हमें सताती हैं। हम पहले चाहते हैं। फिर उस चाह में रोते हैं । ___ चार्ल्स-बिना इच्छा के जीना चाहती हो ? फिर जीना ही क्यों चाहती हो ? पर वह सब छोड़ो। बोलो, चलोगी? माँ का सदमा दूर होगा। अपने पीछे माँ को तो मत भूलो। मेरी फिक्र मुझे नहीं। जिन्दगी तीन-चौथाई तो कट ही गई। बाकी बरस भी इधर-उधर बिता दूंगा। उनकी तैयारी करके आया हूँ। पीछे कुछ नहीं छोड़ा। सब नकद बना कर पास कर लिया है कि जब जैसे चाहे लुटा सकू । तुम अमरीका नहीं चलती और यहाँ हिन्दुस्तान में तपसिन बनकर रहना चाहती हो, तो वैसा कहो। तब मैं भी परिव्राजक की तरह डोलता फिरूँगा। और धन की ऐसी फुलझड़ी जलाऊँगा कि बुझने से पहले उसका प्रकाश तुम भी सराहोगी। ___ लीला-चार्ली, मुझे क्षमा करो। तुम क्या चाहते हो ? मैं वह नहीं हूँ जो तुम समझते हो।
चार्ल्स-मैं क्या समझता हूँ ? लीला-विवाह चाहते हो ? मैं विवाह के योग्य नहीं हूँ। मेरा...