________________ 212 जनेन्द्र की कहानियां [सातवां भाग] भीतर पहुंचे बिना नहीं रहता और वहाँ से फिर वह मिटना नहीं जानता / अभी तो मेरा वर्ष पचपनवां है / शतायु भी हूँ, तो क्या वह हिल सकेगा ? डिग सकेगा ? नहीं, भगवान् ने चाहा तो वह सम्भव नहीं है। न आप में से किसी के साथ, आप कितना ही चाहें शायद वह सम्भव बन सकेगा।