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________________ वह चेहरा २०७ भागती-सी उस चेहरे पर लहराती रहती हैं। दूर से देखता है, पास जा नहीं सकता। चेहरा कभी मुस्कराता है, कभी हँसता है और कभी जैसे सिर्फ विस्मित प्रतीक्षा में सूना ही रहता है। उसका वर्णन नहीं हो सकता । उस चेहरे पर अवयवों को अलग से देखना मुश्किल है। सब साथ, एक ही झलक में दीखता है। उसकी आकृति नहीं दी जा सकती। आकार-प्रकार है, पर चेहरा वह उसमें समाप्त नहीं है। अपने प्रभाव में भी वह दीख आता है। मैं मैट्रिक की तैयारी में हूँ और विलायत की पत्रिकाओं में झाँकने का अधिकार पा गया हूँ । देखता हूँ कि उनमें कितनी ही सुन्दरियों के चित्र हैं । किन्तु मुझ से पूछिए तो सब एक उसी चेहरे के हैं। कोई सुन्दरता उस चेहरे से बाहर हो नहीं सकती। जहाँ सुन्दर है, वहीं वह चेहरा है । इसीलिए उस चेहरे की प्राकृति-प्रकृति निश्चित नहीं है। मानुषी नहीं, वह देवी है। किसी परी की मूरत कभी रेखाओं से घिरी नहीं हो सकती, अपने आस-पास को अपनेपन से वह मुखरित किये रहती है, इसलिए उसके साथ वह तत्सम होती है। उसका शरीर सपने का है, और प्रोस, और हवा का। मैं बैठा हूँ, बैठा पढ़ रहा हूँ। क्या पढ़ रहा हूँ ? मालूम नहीं। पढ़े जा रहा हूँ। कोई प्राया, कोई झांका, कोई गया, लेकिन मैं पढ़ रहा हूँ। वह कोई मां के पास पहुंचा। वहां से एक साथ खिलखिलाहट उठ कर लहराती व्याप गई। लेकिन इम्तिहान मैट्रिक का है और मुझे पढ़ना है। किताब में मैंने अाँख गाड़ रखी । माँ के पास से खिलखिलाहट के बाद किसी की बातें आईं, लेकिन मेरे कान बन्द थे। ' "रानी, कहाँ है तेरी कापी ?" "कापी ?" "हाँ, उसी में तो डिजाइन थे।" "उस कमरे में है।" "तो जा के ले प्रा।" .
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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