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१६८ . जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातवाँ भाग] सकता है। इतना जानकर पत्रों को ज्यों-का-त्यों बाँधकर रख दिया और अचरज करने लगा कि सलाह मुझसे परिस्थिति के ठीक किस बिन्दु पर मांगी जायगी और वह क्या है जो ऐसी कटिबद्धावस्था में देने के लिए मेरे पास हो सकता है। ___मालूम हुआ कि कुमार ने अच्छा-खासा दफ्तर जमा लिया है। सात सौ-पाठ सौ की मासिक आय अभी पक्की है और कार-बार उभार पर है। लेकिन यह भी मालूम हुआ कि एक बार उस पर केस होते-होते बचा है और वह कठिनाई से जेल से बाहर रह सका है।
शाम को कुमार पाया, लेकिन उसने बात नहीं की, सिर्फ आग्रह किया कि मैं उसके साथ कहीं बाहर चलू। मुझे इसमें आपत्ति न थी
और देखा कि मैं उसके साथ मेज पर बैठा हुआ हूँ और शेमपेन भी हमारे बीच आ गई।
कुमार ने जानना चाहा कि मैं उन पत्रों से उसके प्रेम के सम्बन्ध में क्या अनुमान कर सका हूं। मैंने सिर्फ कहा कि प्रेम गम्भीर है।
उसने सुनकर मेरी तरफ गुस्से से देखा, और बोला कि वह सब झूठ है।
मैंने जानना चाहा, "क्या मतलब ?"
उत्तर में उसने काफी कुछ कहा। साथ रह-रह कर ढालता और पीता भी जाता था। मैं समझता हूँ कि अत्यन्त सहज-भाव से वह भूल गया कि पी वह अकेला ही रहा है । मुझसे उस सम्बन्ध में अनुरोध की रक्षा भी नहीं चाह रहा है। उसकी बात से मैंने परिणाम निकाला कि वह यू० पी० के उस दूर के कस्बे में खुद हो पाया है । लेकिन भेंट नहीं पा सका है। प्रेमिका के माता-पिता ने उसे पहचानने से इन्कार कर दिया है । प्रेमिका के सम्बन्ध में कह दिया गया है कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है।