________________
?
चालीस रुपये
कुली ताँगे के पीछे आकर बोला, "उतरो बहू जी ।"
स्त्री अब तक अपनी जगह ही बैठी रह गई थी । सुनकर एकदम चौंकी और झटपट तांगे से उतर प्राई । कुली ने कहा, “ड्योढ़ा दर्जा, बाबू जी ? बहू जी प्लेटफार्म पर चलती हैं, आप टिकट लाइये ।” वागीश ने अनायास कहा, "टिकट है ।"
१८५.
स्त्री सुध खोई खड़ी थी । वागीश ने भल्ला कर कहा, 'क्या खड़ी हो, चलो । कुली के साथ चलो !"
कुछ देर ठिठक कर स्त्री कुली के साथ बढ़ गई । इतने में वागीश के कन्धे पर थापी पड़ी। पीछे मुड़कर वागीश क्या देखता है कि हँस रहे हैं, बाबू रामकिशोर ! - "हेलो वागीश, कानपुर चल रहे हो ? में भी चल रहा हूँ । यह कौन हैं ?"
वागीश ने कहा, "कौन ?"
रामकिशोर ने कहा, "यही, जो साथ हैं ?" वागीश ने कहा, "साथ कौन ? कोई नहीं ।" रामकिशोर ने कहा, “अच्छा कोई न सही ।" और वह मुस्करा दिये । वागीश किसी तरह रामकिशोर से किनारा काट तीर की तरह प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गया। रेल प्राई उसने स्त्री से कहा, “देखो, तुमने मुझे कैसे अब तुम जाओ ।"
स्त्री एक तरफ मुँह झुका कर खड़ी थी वहीं खड़ी रही ।
" जाओ ।"
"चली जाऊँगी ।"
"कब चली जाओगी, जाओ ।"
"आप चले जाएँगे तब मैं भी चली जाऊँगी ।"
"तब क्यों, अभी जाओ !"
न थी । कुली के हटने पर झमेले में डाल दिया है ।
सुनकर नहीं कह सकते कि क्या हुआ । स्त्री एकदम बदली दोखी ।
वह मुस्कराई और बोली - "अभी न जाऊँ तो ?"