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आलोचना
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हम अँगरेजी जानते हैं, सो उसका दण्ड भी तुम्हारे साथ भुगतना होगा कि कान्फरेन्स में जायें और सनें ।" ____ वीरेन हर विषय पर कुछ कथन रखता है । वह राय अपनी बनाता है। जो समझ में नहीं आती, चाहे वह बाबा की बात हो, चाहे गुरु की, चाहे शास्त्र की, वह हिम्मत रखता है कि उसे अस्वीकार कर दे। मैंने कहा, "वीरेन, तुम तो संस्कृत भी जानते हो, हिन्दी के लेखक भी हो। सोशलिस्ट के लिए कोई हिन्दी शब्द तो बनायो। अन्यथा सोशलिस्ट शब्द के भाव के मूल तक हमसे नहीं पहुँचा जाता।"
वीरेन ने कहा, "समाजवाद, साम्यवाद-ये शब्द तो हैं। हाँ, सोशलिज्म से अलबत्ता यह हलके हैं । और पण्डित जी, आप तो अँगरेज़ी के इतने बड़े पण्डित होकर मेरा मज़ाक करते हैं।"
पर मज़ाक की बात नहीं थी। अँगरेज़ी शब्द की मूल प्रकृति हमारे निकट कुछ परदेसी-सी ही रहती है। यों, अँगरेज़ी बोल-लिख लेते हैं तो क्या।
हमने पूछा, "क्यों भाई, तुम सोशलिस्ट हो ?"
वीरेन की मौज यही है कि वह श्रद्धापूर्वक कोई मतावलम्बी नहीं है । उसने कहा, "नहीं, साहब, मैं किसी इज्म में नहीं हूँ। मैं बँध नहीं सकता। हरएक इज्म मेरे लिए एक साइन्स है । और सोशलिज्म ? हा-हा ! आप जानते हैं क्या ? एक बार एक विद्वान् सोशलिस्ट मिले, तब बात करते हुए मैंने कहा-तुम धोती-बण्डी के ऊपर अौर घुटे सिर पर एक बहुत बड़ा, बहुत ऊँचा और बहुत अच्छा हैट पाकर जमा लो,
और कहते-कूदते फिरो कि देखो, क्या बढ़िया हैट है, तो हैट का बढ़ियापन मालूम होने से पहले लोगों को तुम्हारी अक्ल का बढ़ियापन ही मालम होगा। हैट प्रशंसनीय होकर भी तुम उपहास्य होगे। यह सुनकर मेरे प्रतिपक्षी सोशलिस्ट महाशय बड़े खफ़ा हो गये।
मैंने कहा, "वीरेन, तुम किसी के प्रयत्न को दूकानदारी के अलावा