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. त्रिबेनी
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दू? मेरे दस पैसे खर्च हुए हैं । दस पैसे,—जानते हो ? पर तुम बड़े प्रादमी हो-क्या जानोगे।" कहकर वह कठिन हँसी हँसी । बोली, "और इन्हें अब वापस कौन करेगा ?"
व्यक्ति कुछ देर तो मानो सहमा-सा रह गया। फिर एकाएक वह खिल कर हँसा । जोर से बोला, “छोड़ो,-छोड़ो। अच्छा, यह बताओ, . तुम्हारे क्या बाल-बच्चे हैं ?" कहकर वह और भी हँसा।
त्रिबेनी की मुस्कराहट फैल गई, पर वह मुस्कराहट कठिन से और कठिन हो पाई । बोली, "बाल-बच्चा ! हैं क्यों नहीं। हुए चार, है एक । बाहर तुम्हें कोई नहीं मिला ?"
व्यक्ति की हँसी भी इस पर सहसा रुक गई। मूढ़ बना वह बोला, 'क्या-पा"...
त्रिबेनी ने उसी भाव से कहा, "क्या-या नहीं, बाल-बच्चा ! सच, तुम्हें बाहर कोई नहीं मिला ?"
व्यक्ति ने हँसकर कहा, "तुम जाने कैसी बात करती हो ! पर, सचमुच एक लड़के से मैंने मकान पूछा था। वह धरती पर पड़ा था। मेरी बात सुनकर चुपचाप उठा और मुझे यह मकान बता गया। फिर जाकर वहीं लेट गया । लेकिन तुम कह क्या रही हो?" ___ मैं कह रही हैं, "बाल-बच्चा" और उसकी हँसी और भी अनबूझ हो गई।
त्रिबेनी की इस हँसी को देखकर व्यक्ति काँपकर पीला पड़ गया। फिर एकाएक व्यस्त भाव से बोला, "देखो-देखो, मैं कहता न था, मझे जाना चाहिए। देखो, अब तुम रो रही हो । मैंने, सच, बड़ी भूल की, मैं
आया । मुझे माफ़ करो, त्रिबेनी । मैं चला। त्रिबेनी, इसी मिनट चला जा रहा हूँ। फिर तुम क्यों रोप्रो ?" ___इस आदमी के मन की व्यथा को क्या वह समझती नहीं ?-तब वह उसे अपने आँसुओं से कैसे बढ़ा दे ? उसे अपना दुःख अपना पाप