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त्रिबेनी
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कुर्सी पर डाल दी । व्यक्ति आँगन में खड़ा था । त्रिबेनी ने कहा,
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"आइए । "
व्यक्ति ने हँसकर कहा, "लेकिन मैं तो एक हूँ ।"— और वह कमरे में गया ।
त्रिबेनी ने उधर ध्यान न देकर कहा, "बैठिए ।"
व्यक्ति के बैठने से पूर्व वह ही कमरे से बाहर चली गई। चौके में पहुँचकर उसे अचरज हुआ कि उसने यह चूल्हे में पानी कब डाल दिया, क्यों डाल दिया ? क्या अब अँगीठी में आग सुलगावे ? उसने अँगीठी ली और आँगन से होकर घर के बाहर चली ।
व्यक्ति ने आँगन में से जाते हुए उसे देखकर कहा, "क्या कर रही हो ? क्या इरादा है ?"
लेकिन त्रिबेनी ने उसकी बात सुनी भी नहीं और बाहर जाकर एक पड़ोसिन से कहा, "बीबीजी, अपने हेम से चार पैसे का दही मँगा दो । श्रौर रबड़ी, , - चार पैसे की रबड़ी । और दो बीड़े पान । ... और तुम्हारे घर में आँच हो गई हैं ? दो कोयले आँाँच के और दे दो, बीबीजी ! मुझे जल्दी है ।"
कहकर पड़ोसिन को पैसे दे दिये और अँगीठी में कोयले लेकर चली आई |
जा रही थी, तब व्यक्ति ने फिर कहा, "यह कर क्या रही हो ?" त्रिबेनी ने कुछ नहीं सुना । चौके में जा अँगीठी में कोयले डालकर वह जल्दी-जल्दी फूक मारकर उन्हें दहकाने में लगी रही । श्रांच हो गई, तब वही आलू की बटलोई उस पर रख दी ।
अब कमरे में आई । अतिथि ने कहा, "यह क्या कर रही हो ? देखना कुछ... ।”
"
वह बोली, "मास्टरजी यहाँ नहीं हैं...' " नहीं हैं ? कब आयेंगे ?"