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त्रिवेनी
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पर जीने का कुछ रस नहीं मिल रहा है। दोनों जने मिलते तो हैं, बोलते भी हैं; आये साल दोनों अपने बीच नई सृष्टि भी है, चल रहा है । जो हो रहा है, हुए जा रहा है। नहीं । मानो सब कुछ बीतने के लिए बीत रहा है कहीं छुट्टी होगी ।
।
करते हैं । पर ढर्रा
कुछ लुत्फ़ नहीं, सार
मौत आवेगी तब
,
त्रिवेनी सोच रही थी कि अब उठू जाऊँ, उनके लिए पानी ठीक कर दूँ । इतने में पति आ गये ।
आते वक्त रास्ते में उन्होंने देखा था कि रिपुदमन धरती से चिपट कर पड़ा है । रूठा मालूम होता है । शायद पिटा हो । उन्होंने पूछा था, “क्यों रे ! क्यों रो रहा है ?" जब पूछने और बाँह पकड़ कर टिकने से भी लड़का नहीं बोला, तब मास्टर ने कहा, "माँ ने मारा होगा । क्यों ?" बालक फिर भी कुछ न बोला । इस पर भारी मन से मास्टर बच्चे को वहीं छोड़ चुप-चाप चले आये |
त्रिबेनी उठ रही थी कि पति को आता देख कर खाट पर ही बैठी रहीं । पति कमरे में आये, साफा उतार कर खूँटी पर लटका दिया, कोट भी उतार कर टांग दिया और बिना बोले चुपचाप बाहर प्रांगन में प्रा गये । वहाँ घड़े से पानी लेकर हाथ-मुँह धोने लगे ।
त्रिबेनी बैठी देखती रही। दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। पति ने आराम से वक्त लगा कर हाथ-मुँह धोया, अँगोछे से पोंछा, फिर कमरे में आये । वहाँ श्राकर कोट पहना और साफा सिर पर रखते हुए बोले"मैं खाना नहीं खाऊँगा आज ।”
पल-भर मौन रहकर त्रिवेनी ने कहा, “खाना नहीं खाओगे । कल भी नहीं खाओगे ?”
"नहीं दोगी तो नहीं खाऊँगा । देखो, मेरा इन्तजार मत करना । लौटने में मुझे भाज देर हो सकती है ।"
"कुछ काम है ?"