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त्रिबेनी
त्रिबेनी आखिर चौक से बाहर आई। यह कुलच्छनी लड़का जाने कहाँ धूल में खेलता फिरता है। और आता है तो रोता हुआ। घड़ीभर चैन नहीं लेने देता, हाँ तो। - चौक से बाहर आकर कान पकड़-कर उसने कहा, "क्यों रे ! तू कहाँ था ? बोल कहां था ? बोलता नहीं ?-तो जा, मर ।"
बच्चा न बोला, न गया, न मरा । रोता आया था, सो रोना भी बन्द हो गया और मुह फुला कर गुमसुम खड़ा हो गया।
त्रिबेनी ने कान और खींच कर कहा, "क्यों रे ! जवाब क्यों नहीं देता, कहाँ गया था ?
लड़के का नाम रिपुदमन है । वह फूले काठ के लट्ठे की नाई अटल और अपराजित बना हुआ खड़ा रहा।
"अभी तो कपड़े पहनाए थे, अभी कैसे कीचड़ कर लाया ? क्यों रे ! गया कहाँ था ?" कह कर त्रिबेनी घर में खाने को हो तो बच्चे के लिए लेने चली गई।
रिपुदमन आँगन में अकेला रह गया। पहले तो वह खड़ा रहा, खड़ा रहा । फिर उसके बाद चुपचाप बाहर निकला और पास के एक कुएँ पर चढ़, उसमें पैर लटका कर बैठ गया।
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