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तो लाये ?
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अब आँख बचाते हैं और पास नहीं फटकते। दो-चार का जो उस पर देना आता है, वह हमें घड़ी भी चैन नहीं लेने देते। उनकी तरफ बल्कि आस-पास सवकी तरफ उसके मन में कड़वाहट थी । और छोड़ते-छोड़ते भी वह मानो इस दुनिया को अभिशाप देकर जाना चाहता था।
अन्त में उसने मुझसे कहा कि क्या दो रुपये मैं उसे दे सकता हूँ? बड़ी मेहरवानी होगी। दो रोज जी लूगा । मैंने कह दिया था कि दे दूंगा। ___यहाँ श्रीमती की बात कहनी चाहिए । यह सही नहीं है कि उनकी नींद कुम्भकर्णी है । जरा खटके पर जग जाती हैं। किन्तु नौ बजे उनके समय की अवधि है । आवाज पर वह जग तो गई थीं पर नौ कब का हो चुका था। इसलिए निविघ्न भाव से उन्होंने मुझे कुण्डा खटखटाते और चिल्लाते रहने दिया । घड़ी मेरे पास रहती है, फिर भी शायद उनका तरीका यह बताने के लिए था कि अब क्या बजा है ! अब वह चलकर दरवाजा खोलने को तत्पर ही थीं कि नीचे से पुकार बन्द हो गई। ऊपर चुपके झरोखों में से झांककर देखा कि मैं खाट वाले बुड्ढे के पास हूँ। वह इस बात पर अप्रसन्न थीं ! कुछ देर तो धीरज से सहती रहीं। अनन्तर असह्य होने पर नीचे पाकर द्वार खोलकर बोली, "पाओगे नहीं ?" ____ मैं तत्काल उठा । पाकर कहा, "इतनी आवाजें दी, तुमने सुना नहीं ?"
बोली, "मेरी आँख लग गई थी। आधी-आधी रात पाओगे तो मैं कब तक जागती रहूँगी !" ___ "अब तो बिना आवाज के जाग गई ?"
"ये बुड्ढे की खौं-खौं रात को सोने देती है ? उससे क्या बात हो रही थी ?"
सच यह है कि विवाह को पन्द्रह वर्ष हो गए, पर उनके गुण मैं अभी नहीं जानता । बता दिया दो रुपये देने को कह आया हूँ।