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१२२ जैनेन्द्र की कहानियाँ [सातक भाग] __ लेकिन छोड़ो उस बात को । कहानी थी सो हो गयी। तुम कहोगे कि क्या हुआ। मैं कहूँगा कि मेरी आँख खुल गयी। ___तब से मैं मृत्यु का कृतज्ञ होना सीख गया। सुधा तो फिर मुझ से दूर हो ही नहीं सकी । वह सदा को मेरे साथ एक हो गयी। अब मैं अनुभव करता हूँ कि मृत्यु के द्वार में से ही सत्य को प्राप्त करना होगा। सुधा ने मुझे प्राप्ति की वह राह दिखायी।