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प्रियवत
जी, कवि प्रियव्रत की ही बात कहता हूँ। वही जो जवानी में बिचारा मर गया। अन्त की ओर की बात है। हम सहपाठी थे
और प्रियव्रत मुद्दत बाद मुझे मिला था। इतनी मुहत कि अकस्मात् उसे सामने देखकर मैं कह बैठा, "अरे, प्रियव्रत ! तुम, तो अभी बाकी हो दुनिया में ?"
प्रियव्रत ने मन्द भाव से कहा, "हाँ, अभी तो हूँ।"
वह दुबला दीखता था। चेहरा कुछ पीला था, लेकिन आँखें चमकदार और बड़ी। उसे पाकर मैंने एकदम बहुत-कुछ पूछा"कहाँ रहे ? क्या करते रहे ? कोई नई पुस्तक ? कहीं नाम-धाम भी सुनने में नहीं आया। कुछ लिखा-पढ़ा ? नहीं ? तो क्या भाड़ झोंका ? ब्याह हुआ ? बच्चे हैं ?" इत्यादि। ____ उसने संक्षेप में जवाब दिए । मानों ऐसी बातें सब निस्सार हो । पता मिला कि विवाह को कई बरस हो गए। पत्नी मैके हैं। बच्चे दो हुए । अब कोई नहीं है । और शेष चैन है।
"कुछ लिखा नहीं ?" उसने कहा कि लिखने से निवृत्ति पाली है । अब छुट्टी है। मैंने कहा कि लिखना तुम नहीं छोड़ सकते । सुनते हो ?
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