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________________ पानवाला ५५ क्यों आया है ? किसने आने दिया है और किसने पान लिये हैं ?" पुष्पा ने कहा, "यह तो बहुत देर का इस गली में यहाँ से दो-तीन बार घूम गया है ।" आखिर, हार कर कहा, "चार बीड़े पान ले ले, बिचारा बड़ी देर से रहा है ।" आया है । बुआ ने हैरान हो मैं क्या करूँ ? मैंने कहा, "नहीं, उसकी यहाँ कुछ जरूरत नहीं है ।" पुष्पा ने कहा, "वह आपको पूछता था । आपके ही वास्ते, कहता था, इतने वक्त से घूम रहा है ।" मैंने कहा, "मेरे लिए घूमता था ! बदमाश बातें बनाता है ।" लेकिन कुछ देर में मैं नीचे बैठक में पहुँच गया । सोचा, देखूँ, बदमाश मुझ से किस काम का बहाना बनाता है । उसने कहा, "पान ले लीजिए, हुजूर !” मैंने कहा, "पान नहीं लूँगा, काम बताओ ।" उसने कहा, "हुजूर, आपका घर देखने आया था । " मैंने कहा, “घर देखने आया था ? नहीं, कोई काम नहीं है घर देखने का । अब कभी इधर मत आना, उसने कहा, "गलती हो गई हो तो समझे ।" माफ कर दें। मुझ पर नाराज़ न रहें ।” "मैंने कहा, नहीं, तुम यहाँ मत आना । " वह इसी प्रकार कहता रहा कि मुझे उस पर नाराज न होना चाहिए। उसे माफ कर देना चाहिए। वह मेरे पैरों पड़ सकता है, और घर-भर के पैरों में पड़ सकता है । मैं जानता था, यह सब चालाकी है। जानता था कि अपना क्रोध मुझे कम नहीं करना चाहिए, आदमी यह बहुत ही बदमाश है । लेकिन क्रोध उस तरह प्रचण्ड रह सका ही नहीं । जाने क्या था उसकी मुद्रा में जो द्रव था और द्रावक था । उन सुर्वे लगी H2294
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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